द गर्ल इन रूम 105
अध्याय 30
एक हफ्ते पहले
'तुम्हें अपने आपको उससे कम्पेयर करने की जरूरत नहीं है। वो सुपर रिच हुआ तो क्या?" मैंने फिर अपने आप से कहा। मैं ब्रेड में लेटा था, लेकिन सो नहीं पा रहा था। मैंने इससे पहले भी रघु से बात की थी। लेकिन इससे पहले कभी उससे बात करने के बाद मेरी नींद नहीं उड़ी थी। क्या वो कुछ इशारा कर रहा था कोई कटाक्ष या अपमान? मैंने अपने दिमाग़ में हमारी बातचीत को दोहराया। मैंने अभी-अभी उसे फ़ोन लगाकर बताया था कि हमने क़ातिल को ढूंढ निकाला है और वो फ़ैज़ है। मैंने उसे उनके अफेयर के बारे में बताया था। हालांकि मैंने ग्रेसी किट्स जैसी चीज़ों का ज़िक्र नहीं किया था। उसने वैसे ही रिएक्ट किया था, जैसे उसे करना चाहिए था। उसने फैज को कोसा था और भावुक हो गया था। फिर उसने मुझे शुक्रिया कहा और बताया कि अब उसके लिए किसी चीज़ के कोई मायने नहीं रह गए हैं। लाइफ़ उसके बिना अधूरी सी है, उसने कहा।
यह आखरी पंक्ति मेरे जेहन में क्यों अटक गई थी? यह जानी-पहचानी क्यों लग रही थी? मैंने इसे अपने दिमाग में कुछ मर्तबा दोहराया। फिर मैंने अपना फ़ोन उठाया और जारा के साथ अपनी आखरी व्हॉट्सएप चैट देखी, जो मेरी जिंदगी की सबसे कीमती चीज़ों में से एक थी। उस दिन के बाद से अभी तक मैं इस चैट को दर्जनों बार पढ़ चुका था। मैंने उसे एक बार फिर स्क्रॉल किया, जब तक कि मैं आखिर तक नहीं पहुंच गया और वहां पर मुझे वह नहीं मिल गया, जिसे मैं खोज रहा था।
"हां, तुम्हारे बिना लाइफ़ अधूरी सी है।"
मेरी राह की हड्डी में सिहरन दौड़ गई। नहीं, यह केवल एक इत्तेफ़ाक़ ही हो सकता है। मैंने सौरभ की ओर देखा, जो घोड़े बेचकर सो रहा था।
मैं फिर से लेट गया। वो हैदराबाद में था। हॉस्पिटल ने कंफर्म किया था। सेलफोन की लोकेशन ने कंफर्म किया था। कल्ल फ़ैज़ ने ही किया है। उसी पर फोकस करो। मैं बार-बार करवटें बदलता रहा और सोने की कोशिश करता रहा, लेकिन तब एक और विचार मेरे दिमाग
में आया। अगर फैज डायवोर्स लॉयर्स को तलाश रहा था तो वो जारा की हत्या क्यों करेगा? और वो भी यह मालूम होने के बाद कि वो प्रेग्नेंट है। वो तो ज़ारा के लिए सलमा को छोड़ने के लिए तैयार लग रहा था। मैं फिर से उठकर बैठ गया। मैंने अपने फ़ोन में क्लियरट्रिप एप्प खोला और हैदराबाद और दिल्ली के बीच तमाम उड़ानें देखीं। हैदराबाद से दिल्ली के लिए आखरी उड़ान रात 11:30 बजे और दिल्ली से हैदराबाद के लिए
पहली उड़ान 4:55 बजे । यह मुश्किल था, लेकिन नामुमकिन नहीं था। मुझे रघु के साथ हुई एक और चैट याद आई, जब वह सैन फ्रांसिस्को में था।
'मुझे ऐसी ट्रिम्म की आदत है। मैं हमेशा ही ऐसा करता रहता हूं.' उसने कहा था। शायद मुझे खुद एक फ़्लाइट पकड़कर देखना चाहिए कि यह किया जा सकता है या नहीं, मैंने सोचा और
लाइट जला ली। "क्या हुआ?' सौरभ ने कहा।
'मुझे नींद नहीं आ रही है, मैं कहीं घूमकर आता हूं।' ?" सौरभ ने कहा था।